जय श्री राम !जय श्री राम !का उद्घोष, सिंधु की उत्तंग लहरों से टकराकर स्वर्ण नगरी में फैल गया । यह संदेश था, जो सांझ के धुंधलके में इस सन्नाटे भरी नगरी में दबे पांव पसारने लगा था, कि उनका वीर योद्धा किंतु अहंकारी राजा अब नहीं रहा ,कोई खास हलचल नहीं थी ।जैसे सब को पहले से ही परिणाम पता था, जैसे सब उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे, कि जो कुछ होना है, वह शीघ्रता पूर्वक घटित हो और इस असमंजस और उहापोह के वातावरण से मुक्ति मिले। दुर्बल कृषकाय तापसी जो अशोक वृक्ष के नीचे बिछे कुशासन पर