कहाँ से छेड़ूं फ़साना

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सुकून-ए-दिल के लिए कुछ तो एहतमाम करूं ज़रा नज़र जो मिले तो फिर उन्हें सलाम करूंमुझे तो होश नहीं आप मशविरा दीजैकहां से छेड़ूं फसाना कहां तमाम करूं अखबार के प्रतिनिधी से सौम्या की सफलता पर बातचीत के दौरान मेरे हाठों पर अनायास ही ये पंक्तियां चली आईं। इन्हें लिखते समय शायर के मन में चाहे कुछ भी रहा हो पर मेरी आंखों के सामने तो सिर्फ और सिर्फ सौम्या ही थी जो अपने मुख पर एक तेज और होठों पर मुस्कान लिए आगंतुकों से बधाई स्वीकार कर रही थी। आज खुशी के इस मौके पर मुझे बरसों पहले लिये फैसले के