लोहे की जालियां ‘‘देखिये, आप रोज कोई-न-कोई बात कह कर मुझे बहंटिया देते हैं, काम के बहाने टाल जाते हैं। कितनी बार कहा कि आॅफिस से लौटते वक्त, अपने पुराने मकान-मालिक अवनीन्द्र बाबू के घर चले जाइये। मच्छरों, कीट-पतंगों से बचने वास्ते हमने अपनी गाढ़ी कमाई के पैसों से उनके मकान के दरवाजे, खिड़कियों में लोहे की जो जालियांॅ लगवाईं थीं। उस मकान को छोड़ते, अपने इस नये मकान में आते वक्त तत्काल कोई मिस्त्री न मिलने के कारण हम वो जालियांॅ निकलवा नहीं पाये थे। लोहे की उन जालियों के बारे में अवनीन्द्र बाबू का क्या कहना है...? यही