गोपी गीत । (प्रस्तावना)

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शरत्ऋतु की पृर्णिमा थी , रात्रि का समय था । भगवान श्यामसुन्दर वन में पधारे । मुरलीधर ने बंशी की तान छेडी । बंशी की ध्वनि कान में पड़ते ही ब्रज…गोपियाँ व्याकुल हो गई । जिस के हाथ में जो काम था, वह उसे छोड़कर बावरी के सामान वन की ओर भागी । गोपियों को अपने पास आई देखकर श्रीकृष्ण ने बनावटी आश्चर्य कै साथ कहा… अरी गोपियों! रांत्रि कै समय तुम वन में कैंसे आ गईं ? गोपी धीरज धारण करके दीन भाव से बोलीं-हमारे प्यारे चितचोर ! घरवालों से