बच्चों की ज़िद

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"रोते रोते सो तो गया था मोहन! पर घर वापस जाते हीं फिर से हल्ला करेगा। छोटा सा बच्चा! कैसे समझाऊं उसे? पैसे भी तो नहीं है पास में!'' यही सब सोचते हुए श्यामा काम पर जा रही थी। तभी उसे याद आया कि नई मेम साहब का भी तो एक छोटा बेटा है। ''कितना खुशनसीब लड़का है! इतने बड़े घर में पैदा हुआ है। बहुत खुश रहता होगा! भगवान ऐसा भाग्य सबको दे।'' और फिर तभी मोहन उसके दिमाग में घूमने लगा। आंखें आंसुओं से भर गईं।''हाय बेचारा! उसकी एक भी फरमाइश पूरी नहीं कर सकी। कैसी मां हूं