पतझड़

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पतझड़/ सुधा भार्गव कुछ साल पहले की ही तो बात है हमारे मित्र की बेटी सुलक्षणा और दामाद सौरभ अपने प्यारे से बच्चे रूबल के साथ चार साल के लिए लंदन गए। दोनों ही डाक्टर थे। अरमान था कि बेटे को कुछ साल तक वहीं पढ़ाएंगे। सोचते थे बाल पौधे को हरा –भरा रखने के लिए वहाँ काफी रोशनी –पानी और खाद मिलेगी। रूबल वहाँ बहुत खुश था। उसका चंचल मन हमेशा वहाँ सक्रिय रहता। बाजार जाता तो किताब की दुकान में शब्दों पर निगाह जमाए पन्ने पलटता रहता ,घूमने निकलता तो आगे –आगे