आशीर्वाद या –----!

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कहानी आशीर्वाद या –----! सुधा भार्गव अपनी शादी के करीब एक वर्ष बाद मैं अपने पति के साथ कलकत्ते से दिल्ली लौटी। वहाँ समय कम था रिश्तेदारी बहुत। एक पूरब में तो दूसरा पश्चिम में। पर सब को मिलने का बड़ा चाव---सबसे कैसे मिला जाय?एक बड़ी समस्या। ससुर जी पास न कोई कार थी और न कोई स्कूटर।जिस पर सवार हो हम मिलने जाते । ससुर जी ने इसका हल ढूंढ निकाला। दूसरे दिन दिल्ली के दूर -दूर कोनों में बसी पाँच ननदें और जिठानी को परिवार सहित अपने घर बुला लिया।