आँसरिंग मशीन (कहानी - पंकज सुबीर) ‘‘घिन आती है मुझे इन सबसे’’ सुदीप का स्वर काफी हिकारत से भरा हुआ था। ‘‘क्यों ...? इसमें घिन की क्या बात है, आजकल कुल मिलाकर केवल एक ही दौड़ है, आइडेन्टिटी की दौड़, और अगर इसके लिये कोई कुछ हथकंडे अपनाता है तो ग़लत क्या है ?’’ सिगरेट की राख को चाय के खाली ग्लास में झाड़ते हुए प्रोफेसर भारद्वाज ने कहा। ‘‘तो फिर उन वेश्याओं को बुरा क्यों कहा जाता है, जो अपना शरीर बेचती हैं, हम भी तो वही कर रहे हैं’’ रोष भरे स्वर में कहा सुदीप ने। ‘‘कौन बुरा