तालियाँ कवि कौशल प्रताप मंच पे धाक जमाए हुए थे। उनके एक-एक शब्द पर स्रोता झूम रहे थे। उल्लासित हो रहे थे। बेसाख्ता तालियाँ पीट रहे थे। कौशल प्रकाश के चेहरे पर अजब सी आभा थी। चेहरे पे गुलाबी मुस्कान फैली पड़ी थी। वह झुक-झुक कर स्रोताओं का अभिवादन करते। स्रोताओं के आगे नत-नत जाते। उन्हें स्मरण हो आया था अपने बचपन का वो दृश्य जब उनके कस्बे में एक कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ था। पिता के साथ दस वर्षीय वह भी लग लिए थे। कवि सम्मेलन देर रात तक चला। स्रोता रात भर झूमते रहे। उठे ही नहीं।