बदलते प्रतिमान

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सुबह जागने के लिए और रात सोने के लिए न बनायी जाती, तो कितना अच्छा होता न किसी को जगाने के लिए आवाज़ देनी पड़ती, और न ही सोने के लिए कहना और मनाना पड़ता | कामना पौधों को पानी देती और खिड़की से झाँक-झाँक कर मन ही मन बुदबुदाती जा रही थी | “जी तो ऐसा करता है कि इसी हज़ारा के पानी से उसका मुँह भी छिड़क दूँ जाकर |”वह बेटे को आवाज देते-देते उसके पलंग तक जा पहुँची | “अरे रे रे रे! ये क्या कर रही हैं आप ?” चादर मुँह पर खींचते हुए बेटे ने माँ से कहा