मंजिल

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"इसे कहते हैं पास होना" वाले शब्दों ने मेरे कदम मंजिल की ओर बढ़वा दिए।उस समय मैं जवाहर नवोदय विद्यालय वालपोई उत्तर गोवा,गोवा में हिंदी शिक्षक के रूप में कार्यरत था। एक दिन शाम को मैं और मेरा साथी अध्यापक एस. एन. सिंह सर कुछ ‌समान खरीदने के लिए वालपोई वगायत बाजार गए हुए थे। अचानक फोन की घंटी बजी। दोस्त के फोन से आ रही घंटी की आवाज सुनकर मुझे बड़ी खुशी हो रही थी। उस समय मेरे पास स्मार्टफोन नहीं था,नोकिया 1100 था। जिसकी काॅलर टुन भी मैंने नवोदया नमोस्तुते नवोदया नमोस्तुते लगा रखी थी। यह नई नई