चोर.

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चोर रात के खाने का निबाला अभी मुहॅं में डाला ही था कि चोरऽऽ चोरऽऽ का शोर मेरे कानों से टकराया। मैं चैंका लेकिन यह सोचकर खाने में मशगूल हो गया कि रोज़ रात को गॉव में रहने लगे ईंट बनाने वाले मज़दूर शराब पीकर अक्सर लड़ते रहते हैं। शायद यह शोर उन्हीं का हो। लेकिन थोड़ी देर बाद चोर-चोर के शब्द फिर गूॅंजे। आवाज़ गॉव के किसी आदमी की ही लग रही थी। वैसे भी बिहार, छत्तीसगढ़, यू.पी., मध्यप्रदेश आदि राज्यों से आए इन मज़दूरों की बोली हमारी बोली से मेल नहीं खाती। मैं हैरान था। मेरी आज तक