कीमत पांच रुपये की

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" कीमत पांच रुपये की" मुझे याद है आज भी वो दिवाली का दिन। शाम का वो वक़्त था लोगों के घर तो रोशन थे इतने कि आंखें चुंधिया जाए।। ओर दूसरी तरफ था मेरा घर जिसमें अँधेरा छाया हुआ था।। एक अजीब सी उदासी थी मेरे मन में कि शायद ये दिवाली का त्यौहार मुझे बस नीचा दिखने ही आया है इसीलिए तो आज रौशनी के इस दिन भी ,मेरे घर में इतना अँधेरा छाया है।। मैं उठ कर गया , डिब्बों को खंगाला भी ।। पर उस वक़्त मेरे घर में दिए जलाने के लिए