“हाँ...नपुंसक हूँ मैं”बचाओ...बचाओ...की आवाज़ सुन अचानक मैं नींद से हड़बड़ा कर उठ बैठा। देखा तो आस-पास कहीं कोई नहीं था। माथे पर उभर आई पसीने की बूँदें चुहचुहा कर टपकने के मूड में थी। घड़ी की तरफ नज़र दौड़ाई तो रात के लगभग सवा दो बज रहे थे। पास पड़े जग से पानी का गिलास भर मैं पीने को ही था कि फिर वही रुदन...वही क्रंदन मेरे अंतर्मन में पुन: गूंज उठा। कई दिनों से बीच रात इस तरह की आवाजें मुझे सोने नहीं दे रही थी। अन्दर ही अन्दर मुझे अपराध भाव खाए जा रहा था कि उस दिन..हाँ..उस