विवाह के पंद्रह वर्ष बीत चुके थे लेकिन रमा और अंश की झोली संतान के नाम पर अभी तक खाली ही थी । अंश के काम पर चले जाने के बाद रमा को खाली घर काटने को दौड़ता । दिल में निराशा घर करने लगी थी कि एक दिन बाजार से लौटते हुए एक तीन साल की गुड़िया सी दिखनेवाली गोलमटोल छोटी सी बच्ची बस अड्डे के बाहर रोती हुई मिली । आसपास देखा । कोई न था । लोग एक नजर बच्ची की तरफ डालते और फिर अपने रास्ते आगे बढ़ जाते । रमा ने प्रेम से उस बच्ची