वायरस घाट की सीढ़ियों से गंगा के किनारे की ओर जा रहा था।आज भीखमंगे बहुत कम संख्या में कार्यरत थे।वहाँ उपस्थित भीखमंगों के चेहरे पर की अनगिनत आँखे बहुत चिंतित लग रही थी।हमने बात करने की कोशिश की।"आज आपके साथी कहाँ गए हैं?कोने पर बैठे दादा जी नहीं दिख रहे हैं!और उनके बगल में बैठी छोटी लड़की भी नहीं दिख रही है!वो जिसके पाँव कटे हुए हैं और वो घिसट-घिसट के चलता है,वह भी नहीं दिख रहा है?"जितने लोग स्मृतियों में थे पर यहाँ साक्षात नहीं दिखे तो उनके बारे में पूछना लाज़मी था।जिससे पूछ रहा था