धरना - 3

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निखिल कुछ देर वही खड़ा रहता हैं.... कुछ सोचता हैं... जनता चॉल की बस्ती को निहारता हैं... और फिर वहां से निकल पड़ता हैं... ----------------लेकिन अब जो हुआ प्रिया, उसे भूल जाना ही बेहतर हैं तुम वेबजह उसकी खोज में मत पड़ो.... ओह वसुंधरा... तुम्हारी सोच और नज़रिया में दोनों को समझ गयी मैं ... लेकिन ये मत भूलो कि उसके हम पर कितने एहसान हैं... वो सख्स जो कभी हम लोगों के लिए हर वक़्त हर हाल में खड़ा रहता था आज वो गुमनामी की जिंदगी को जी रहा हैं... तो क्या हमारा फर्ज़ कुछ नहीं बनता... वो वक़्त कुछ और था प्रिया ऐसे