गाली की धिक्कार

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भारी कदमों के साथ वह आगे बढ़ा। जीवन में यह पहला अवसर नहीं था जब वह अपमानित हुआ या मानसिक प्रताड़ना के दंश ने उसके आंतरिक मन को कटिले तारो से खरोचा हो ,पर आज का दिन और मन दोनो भारी था। अंधेरे को पार कर वह तालाब के किनारे लगे स्ट्रीट लाइट के प्रकाश में आया, दृष्टि को जूम करके अपने मन की तरह उजाड़ और मरुस्थलीय पृष्ठ भूमि की खोज करने लगा परन्तु चारों ओर पिकनिक का माहौल था लोग अपने अपनो के साथ अपनी दुनिया में व्यस्त थे। वह चुपचाप एकांत कोने में बैठकर अपने मन के