बिराज बहू - 3

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तीन साल बाद... हरिमती को ससुराल गए तीन माह हो चुके थे। पीताम्बर ने अपने खाने-पीने का हिसाब एक घर में रहते हुए भी अलग कर लिया है। सांझ हो गई है। चण्डी-मण्डप के बरामदे में एक पुरानी खाट पर नीलाम्बर बैठा था। बिराज उसके पास आकर मौन खड़ी हो गोई। नीलाम्बर उसे देखकर चौंका, “एक बात पूछूं?” “पूछो।” बिराज ने कहा- “क्या खाने से मृत्यु आ जाती है?” नीलाम्बर खामोश। बिराज ने फिर कहा- “तुम दिन-प्रतिदिन दुर्बल क्यों होते जा रहे हो?” “कौन कहता है?”