फ्यू -फाइन्ड इटर्निटी विदिन - क्योंकि लाइफ की ऐसी की तैसी न हो - भाग-5

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26) दिन भर बारहों घंटे बोलते रहना आसान है, लेकिन बारह मिनट सुनना निहायत कठिन है। बोलने की क्रिया में बुद्धि की कोई विशेष भूमिका नहीं होती। बोलना एक मस्ती है, जबकि किसी को सुनना एक शक्ति है। शब्द का उपयोग शस्त्र की तरह हो, इसकी किसे चिन्ता है? दूसरे की बात को बीच में ही काटकर अपनी वाक्यधार की गंगा बहाते रहना अधिकांश लोगों का शगल है। लेकिन यह अच्छी आदत नहीं है। दुनिया में जिन व्यक्तियों ने कुछ उल्लेखनीय कार्य किया है, उन महापुरुषों व विद्वानों के उदाहरण देखें। ये सभी जितना आवश्यक होता था, मात्र उतना ही