दास्तान-ए-अश्क - 13

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' कहीं चोट आई थी मुझे कहीं जुल्मों का मारा था मजमा था दिल की कशिश का कहीं उसका सहारा था' (दास्तान के अगले पार्ट में हमने देखा कि वह नरेंदर से मिलने जाती है तो नरेंदर उसकी बातें सुनकर गुस्सा हो जाता है उसको कस के पकड़ता है.. अब आगे) नरेंद्र का गुस्सा उसके शब्दों में उतर आता है ! मैं तुम्हारे जितना बेवका नहीं हुं! पत्थर दिल भी नहीं हूं! मैने तुमसे प्यार किया है! सपने में मैंने जो तुम्हारी छवि बना रखी है उस स्थान पर ना किसी और के लिए जगह है