दास्तान-ए-अश्क - 10

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9 (काफी वक्त हो गया जब मैंने कुंदनिका कापड़ियाजी की सात पगलां आकाशमां नोवेल पढी थी...!उनके जैसा तो सात जनम लु तबभी नही लिख सकता.. स्त्रीयां की छोटी बडी सब समस्याओं को बखुबी शब्दो में उतार कर एक अच्छा संदेश दिया था! तबसे धनक लगी थी..! एसी कहानिया लिखने की ! स्त्रीजीवन सामयिक मे बहोत सी प्रकाशित हुई..! लंबे अरसे बाद फिर वही अंदाज दोहराने का मौका मिला.. मेरे सभी पाठको ने मेरी कहानियां को सराहा है..! मेरे आप्तजनो की तरह सबने मेरे उत्साह को बरकरार रखा.. ये दास्तान-ए-अश्क मेरे सभी पाठको को समर्पित करता हुं..! तहे दिल से सबका शुक्र