बाहर शहनाइयों का शोर, मेहमानों की चहलपहल और शादी की सजावटों के बीच सुरेखा सोच रहीं थी की अब जल्दी ही उनकी बेटी संजना विदा होकर ससुराल चली जायेगी ।बेटी का विवाह करके उनका बहुत बड़ा कर्तव्य पूरा हो जाएगा लेकिन बेटी से बिछोह का ख्याल अनायास ही उनकी आंखें भिगो गया।उन्हें याद आने लगा पच्चीस साल पहले का एक ऐसा ही दिन, ऐसी ही सजावट ऐसी ही चहलपहल, अंतर बस ये था कि उसदिन दुल्हन सुरेखा खुद थीं, अपने आप में सहमी सिमटी उन्नीस साल की सौन्दर्यपूर्णा सुकुमारी सुरेखा।उस दिन भी उनके मन में विछोह के ख्याल आया रहे