धूप छाँव

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खुशियों को पंख मिले और जीवन को नवल संभावनाएं. गोपेश को उसने पसंद किया था. लगन के पहले, वरपक्ष की जांच- पड़ताल की गई थी. होने वाले वर को, जांच- परखकर, ठोंक- बजाकर, ‘फाइनल’ किया था. सब कुछ कितना देखा- भाला था...फिर चूक कहाँ हुई?! निशि को याद आया, बहू की रसोईं वाला दिन. गोपेश उसकी मदद को आ खड़े हुए थे. अतिथियों को जिमाया जा रहा था. निशि से गोपेश की चुहल को देख भौजी ने आँख दबाकर बोला, “मैंने पति चुन लिया तो चुन लिया”. किसी फ़िल्मी डायलाग सा नाटकीय, उनका संवाद था उनकी बुलंद आवाज़, व्यंग्य का पुट लिए थी.