कहानी में दो पत्रकारों के बीच पिछली सदी के चांद के बारे में बहस होती है। एक पत्रकार का कहना है कि पिछली सदी का चांद इस सदी के चाँद जैसा नहीं था, जबकि दूसरा पत्रकार इसका विरोध करता है और बताता है कि उसने यह जानकारी सरकारी म्यूजियम में देखी थी। जब वे म्यूजियम पहुँचते हैं, तो पता चलता है कि चांद टेढ़ा हो गया है और मरम्मत के लिए भेजा गया है। इससे निराश होकर, दोनों पत्रकार एक नया मुद्दा तलाशते हैं और सवाल उठाते हैं कि चांद "टेढ़ा" कैसे हुआ। वे इस विषय पर रिपोर्ट बनाकर सरकार को भेजते हैं, जिसमें म्यूजियम के कर्मचारियों पर संदेह जताते हैं। इसके बाद, सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से लेती है और विभिन्न शोध संस्थानों को मदद के लिए आमंत्रित करती है। जल्द ही, चांद का टेढ़ापन अखबारों और टीवी चैनलों की सुर्खियाँ बन जाता है, और यह राजनीतिक बहस का मुद्दा बन जाता है। विपक्ष इस मुद्दे को उठाकर सरकार को चुनौती देता है। अंततः, सरकार संकट को संभालने के लिए तीन शोध संस्थानों को चुनती है।
म्यूजियम में चाँद
by amitaabh dikshit in Hindi Comedy stories
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Description
“कहते हैं पिछली सदी का चांद इस सदी जैसा नहीं था” एक बोला. “नहीं बिल्कुल ऐसा ही था” दूसरे ने पहले की बात काटी. “तुम्हें कैसे मालूम है” पहले ने पूछा. “मैंने म्यूजियम में देखा था” दूसरे ने बताया. “वहां चांद कहां से आया” पहले ने पूछा. “यह मुझे क्या पता” दूसरा बोला. “तुमने किस म्यूजियम में देखा था” पहले ने फिर सवाल किया. “सरकारी म्यूजियम में” दूसरे ने अपनी जानकारी जाहिर की. “चलो वही चलते हैं चलोगे “ पहले ने चलने की तैयारी करते हुए कहा. दोनों चल दिए. म्यूजियम पहुंचने पर पता चला कि वह चांद जरा टेढ़ा
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