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Rudra Kunwarsa

Rudra Kunwarsa

@rudrakunwarsa085710


ભગત સિંહ, સુખદેવ, રાજગુરુ આજે પણ જન્મે છે
પરંતુ મહોબ્બત દેશ ની જગ્યાએ બીજે કરી લે છે
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आखरी खत
यूँ तो जरुरी नही था लिखना
ईतने सालो बाद तम्हें कुछ भी
पर जब वक्त होता है कम
गैर जरूरी लगने वालि बाते
हो जाती हैं जरूरी
याद आ जाता है बहोत कुछ
जिनको लिखना होता है उतना ही
मुश्किल
जितना मुश्किल होता है उन्हें भूलना
शायद खतौ का इजाद किया गया हॉ इसी खातिर
ताकी जब यादों पर जमने लगे धूल
कोई तस्वीर होने लगे धुंधली
तब बैरन हवा से फड़फड़ाये वो पन्ना
जिसमें लिखा है वो सब
जिसे पढ़े बिना ही नम हो जाये आँखे
समज जाये दुनिया
वो आखरी खत
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क्यो की मेरी मोहब्बत का अस्तित्व आज भी है
वक्त ने कई जख्म भर दिए
मैं भी बहोत कुछ भुल चुका हु
पर किताबो पर धूल जमने से
कहानियाँ कहा बदलती हैं
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किसी का सत्य था,
मैंने संदर्भ से जोड़ दिया।
कोई मधु-कोष काट लाया था,
मैंने निचोड़ लिया।
किसी की उक्ति में गरिमा थी,
मैंने उसे थोड़ा-सा सँवार दिया
किसी की संवेदना में आग का-सा ताप था
मैंने दूर हटते-हटते उसे धिक्कार दिया।
कोई हुनरमंद था:
मैंने देखा और कहा, 'यों!'
थका भारवाही पाया-
घुड़का या कोंच दिया, 'क्यों?'
किसी की पौध थी,
मैंने सींची और बढ़ने पर अपना ली,
किसी की लगायी लता थी,
मैंने दो बल्ली गाड़ उसी पर छवा ली
किसी की कली थी:
मैंने अनदेखे में बीन ली,
किसी की बात थी।
मैंने मुँह से छीन ली।
यों मैं कवि हूँ, आधुनिक हूँ, नया हूँ:
काव्य-तत्त्व की खोज में कहाँ नहीं गया हूँ?
चाहता हूँ आप मुझे
एक-एक शब्द सराहते हुए पढ़ें।
पर प्रतिमा- अरे वह तो
जैसी आपको रुचे आप स्वयं गढ़ें।
===અજ્ઞેય

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