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Mukesh Joshi

Mukesh Joshi

@joshimukesh1010
(38)

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मिट्टी मेरी कब्र से चुरा रहा है कोई ..... क्यों मर कर भी आज याद आ रहा है कोई... एक पल की ज़िन्दगी मुझे और दे खुदा.......खामोश मेरी कब्र से आज जा रहा है कोई.........

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जो निकल पड़े थे अम्बर पर..
थोड़ी सी ज़मीं पाने को ।
परिन्दे बेताब हैं वो अब..
शाखों पर उतर आने को ।।

यूँ परेशान हूँ फ़ज़ीहतों से।
ज़माने भर की नसीहतों से।

तुम ख़यालों की चिड़िया हो,
मैं चिड़ियों में सोन हूँ।
तुम ढोल-नगाड़ों से,
मैं शोरों में मौन हूँ ।
लिख रहा हूँ तारूफ़
नसीब के पत्थर पर,
तुम ढूंढ़ लेना दौलतों को,
मैं ढूंढू मैं कौन हूँ।

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कुछ बंद दायरे ज़हनों के,
जो बंद पड़े हैं सदियों से..!
उन परतों को उन बातों को,
उन उलझे-उलझे धागों को...
खुद बेबस हैं, सुलझाएं क्या..!
हम पहले से कुछ पागल हैं..
कुछ टूटे-फूटे से दिल लेकर,
क्या चाहते हो दुनिया वालों.
पूरे पागल हो जाएं क्या..!!

#Frustrate #

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जिन मेलों को जीवन समझा,
यूँ गुल फूटे उन मेलों के...!
वो ही पटरी काट रहे थे..
थे रखवाले जो रेलों के...!!
#Betrayed #

क्या सचमुच पतंग है ये ज़िन्दगी?
कुछ दूर तक है जाती..,
कुछ खम्भों में सिमटी पड़ी है..!
कुछ पेंचों से टकराती..,
खुद के मांझों में उलझी हुई है!
पूछा जब-जब सवाल के कैसे हो?
एक अनमना सा जवाब...
"बस कट रही है।"
शायद ... पतंग ही है ये ज़िन्दगी।

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