आज सोशल मीडिया पर लेखकों के लिए उपलब्ध अधिकांश ऐप्स, लेखन के हर रूप से केवल अपनी कमाई निकालने में लगे हुए हैं। विडंबना यह है कि वर्षों से मौजूद लेखकों की रचनाएँ भी अब प्रीमियम के बिना सीमित कर दी जाती हैं।
मुझे स्पष्ट रूप से याद है कि 7–8 वर्ष पहले, जब मैंने Kuku FM, Quotes और Matrubharti जैसे प्लेटफॉर्म जॉइन किए थे, तब इनका रवैया बिल्कुल अलग था। उस समय बिना किसी प्रीमियम के कहानियाँ, कविताएँ और कोट्स प्रकाशित किए जा सकते थे। ऐप संचालक विज्ञापनों से आय अर्जित करते थे और लेखकों को कम से कम स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अवसर मिलता था।
आज स्थिति यह है कि नए और पुराने लेखकों में कोई अंतर नहीं किया जाता। वर्षों की साधना और अनुभव रखने वाले लेखक और आज आए नए लेखक—दोनों को एक ही पंक्ति में खड़ा कर दिया गया है। यह व्यवहार न तो न्यायसंगत है और न ही स्वीकार्य।
सच यह है कि लेखकों के बिना ये ऐप्स अस्तित्व में ही नहीं रह सकते, फिर भी लेखक सबसे उपेक्षित वर्ग बना हुआ है। यदि ऐप संचालक चाहें तो कम से कम लेखक की पोस्ट पर मिलने वाले लाइक, कमेंट और रीड्स के आधार पर प्रोत्साहन या पारदर्शी लाभ-साझेदारी तो दे ही सकते हैं—पर ऐसा कहीं देखने को नहीं मिलता।
यहाँ शब्दों और साहित्य से अधिक प्राथमिकता ऐप संचालकों की कमाई को दी जाती है। लेखक खुश हो जाता है यह देखकर कि आज उसकी पोस्ट पर इतने लाइक और कमेंट आ गए, लेकिन सच्चाई यह है कि न लाइक से लोकप्रियता मिलती है, न उससे कोई वास्तविक आमदनी होती है।
कई प्लेटफॉर्म पर दिखाया जाने वाला कुल लाइक और व्यूज़ का आँकड़ा भी अक्सर कंप्यूटर-जनित और पूर्व-नियोजित खेल मात्र होता है, जिसके सहारे लेखकों को यह भ्रम दिया जाता है कि वे आगे बढ़ रहे हैं—जबकि वास्तविक लाभ कोई और ही उठा रहा होता है।
अंततः यह सब लेखकों की स्वयं की चेतना और सोच पर निर्भर करता है।
क्योंकि यदि आपकी मेहनत की कमाई कोई दूसरा खा रहा है और आप केवल लाइक-ग्राफ में उलझे हुए हैं, तो आप अपनी सबसे कीमती पूँजी—समय और प्रतिभा—दोनों व्यर्थ कर रहे हैं।
अब निर्णय आपको करना है—
सिर्फ दिखावे की सराहना चाहिए या अपने लेखन का वास्तविक सम्मान।
---