मैं और मेरे अह्सास
मिलन
जमीन औ आसमान कभी भी मिलते ही नहीं l
बिना माली के गुलशन में गुल खिलते ही नहीं ll
बड़े व्यस्त हो गये हैं इश्क़ वाले देखो कि l
आजकाल वो ख्वाबों में भी दिखते ही नहीं ll
इतने सीधे सादे ओ नादां है भोले सनम कि l
सही तरीके से जूठ बोलना सिखते ही नहीं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह