ख़्वाबों की किताब......
रात की तन्हाई में जब चाँद खिलता है,
तेरी यादों का बादल धीरे-धीरे घिरता है।
ठंडी हवाएँ तेरा अहसास कराती हैं,
जैसे तू पास है, पर नज़र नहीं आती है।
एक पन्ना खोलता हूँ मैं ख़्वाबों की किताब का,
जहाँ हर लफ्ज़ में बस तेरा ही हिसाब था।
तेरे हाथों का स्पर्श, वो धीमी मुस्कान,
हर लम्हा कैद है इसमें, हर बात मेहरबान।
तू नहीं आई हकीकत की राहों में,
पर मेरी कहानियों में तू ही है बाँहों में।
जब दिन को रात लिखने की बारी आएगी,
तेरी मुस्कुराहट मेरे लफ्ज़ों में उतर आएगी।
तेरी बेरुख़ी का भी मैं हिसाब रखूँगा,
तेरे सवालों के जवाब लिखूँगा।
"क्यों नहीं हुए तुम मेरे" इसका भी हिसाब रहेगा,
पर फिर भी दिल तेरा नाम लेता रहेगा।
तू मेरे दिल में नहीं, ये सच नहीं हो सकता है,
पर मेरी रूह तेरी धड़कन पे ही रुक सकती है।
तेरी हर याद को मैं सहेजता रहूँगा,
हर दिन, हर रात तेरा नाम लिखता रहूँगा।