हर मन में भक्ति का व्यापार जन्मा है।
जो भक्ति थी—अब ब्रांड हो गई,
जो आस्था थी—अब इंस्टाग्राम पर ट्रेंड है।
हर आरती के पीछे स्पॉन्सर लिखा है,
हर मंदिर के बाहर ‘क्यूआर कोड’ झिलमिलाता है।
लोग मुझे खोजने आए हैं,
पर मन में नहीं, मॉल में।
किसी के पास सेल्फी है,
किसी के पास सेल्स टार्गेट।
मैं मुस्कराता हूँ—
क्योंकि जानता हूँ,
जिस दिन वे सच्ची श्रद्धा से
भीतर झाँकेंगे,
उन्हें मुझसे मिलने टिकट नहीं लगेगा,
न दान-पेटी खुलेगी।
धर्म का अर्थ मैंने सिखाया था—
*“कर्तव्य, करुणा और सत्य।”*
पर अब वही तीन शब्द
पैकेट में बंद हैं, कीमत लगी है।
फिर भी मैं प्रतीक्षा में हूँ—
क्योंकि जानता हूँ,
एक सच्चा हृदय अभी भी कहीं है,
जो बिना दिखावे के
बस प्रेम से “कृष्ण” कहेगा—
और मैं वहीं पुकार सुन लूँगा।
आर्यमौलिक