"रिश्ते की खामोशी"
(हसन और शहनाज़ की कहानी पर आधारित कविता)💗🔥
वो शादी थी... मगर इज़ाज़त के बिना,
दिल जुड़ा था… पर मोहब्बत के बिना।
लब हँसते थे, आंखें सूनी थीं,
हम दोनों थे पास… पर दूरी पुरानी थी।
उसने छुआ था, मगर एहसास नहीं था,
हर रात गुज़री थी, मगर विश्वास नहीं था।
मैंने निभाया, उसने सहा,
हम दोनों ने कभी एक-दूजे को कहा ही क्या?
मैं सवालों में थी, वो खामोश था,
मैं अधूरी थी, वो शायद खोया हुआ कोई जोश था।
फिर एक दिन उसकी आँखों में कुछ टूटा,
और मेरी चुप्पी में एक ‘क्यों’ फूटा।
उसने माना – वो रिश्ता बीते कल से था,
पर क्या मैं सिर्फ़ एक साया थी जो उसके पल से था?
मैंने माँगा — सिर्फ़ एक दिल की जगह,
ना किसी की यादें, ना झूठी तरह।
पहली बार उसने मेरा नाम सच्चाई से लगाया।
अब वो सुबहें मेरी हैं,
अब उसकी चाय में मिठास मेरी है।
अब उसकी डायरी में सिर्फ़ एक नाम है,
जिसे उसने ज़बरन नहीं, मर्जी से अपनाया है।
"रिश्ते खून से नहीं,
एहसास से बनते हैं।
और जबरन से शुरू हुए रिश्ते भी,
अगर दोनों चाहें… तो मोहब्बत में बदल सकते हैं।"
#अनचाहीमोहब्बत
~diksha