…तो तुम चाहती हूँ कि मैं तुम्हारे बारे में कुछ लिखूँ
यानी कि तुम ये चाहती हो कि मैं अब से कुछ ना लिखूं…
क्योंकि शायरी ग़ज़ल गीत कविता मैं तुम समा नहीं सकती…
मल्लिका रानी परी जैसे शब्दों की कतार तुम्हारे आगे कम सी लगती…
क्यों तुम ये चाहती हो कि मैं शब्दों के समंदर में डूब जांऊ और मुझे कुछ न मिले…
मैं कोई जादूगर तो नहीं कि मुठ्ठी बंद करके खोलुं तो
शब्द निकले…
क्यों मैं पालूँ कुछ न लिख पाने के शिकवे गीले…
रब्बा मेरे…ये कैसी बेबसी ये कैसे सिलसिले…
मगर फिर भी तुम चाहती हो कि मैं तुम्हारे बारे में कुछ लिखूँ…
तो सुनो…
तुम कुदरत की बनाइ हुई अनमोल अनुपम रचना हो…
मैं तुम्हें कोई उपमा नहीं दे सकता
क्योंकि तुम ख़ुद एक उपमा हो…
Dk’s world…
- Devesh Sony