✍️ "ना थाली में दाल थी, ना कागज़ पर रेखा,
फिर भी कवि ने वह लिखा, जिसे कोई न देख सका।"
इस कविता का उद्देश्य केवल पढ़ना नहीं है —
बल्कि सोचना, महसूस करना और जागना है।
यह रचना, उन हज़ारों-लाखों कवियों की वाणी है
जो भूखे रहे, पर समाज को भावों से भरते रहे।
"सम्मान नहीं मांगा, बस समझदारी की नज़र मांगी।
कलम की कीमत पूछने वालों से, संवेदना की भीख मांगी।"
🟡 क्या हमने कभी किसी कवि की भूख को समझा?
🟡 क्या कविता केवल मंच की ताली है, या आत्मा की पुकार?
🟡 क्यों शब्दों से समाज बनता है, पर कवियों को भुला दिया जाता है?
🟡 क्या अब समय नहीं कि हम “कवि” को भी उतना ही मान दें — जितना एक वीर को, एक शिक्षक को, एक जनसेवक को?
🟡 क्या सिर्फ व्यावसायिक सफलता से ही व्यक्ति की कदर होनी चाहिए?
यह कविता हर उस युवा को प्रेरित करती है, जो दिल में लिखने का जज़्बा रखता है,
और उसे कहती है — "रुको मत, डरो मत, लिखते रहो। तुम्हारा कलम तुम्हारा धन है।"
🔖 #कवि_कंगाल_कलम_धनवान
🔖 #आत्मा_की_कविता
🔖 #शब्दों_का_संघर्ष
🔖 #कवि_का_सम्मान_कब ?
🔖 #AbhishekMishraKavita