रगों में शोणित, परशुराम का बहता है।
अग्नि का तेज, हर नस में रहता है।
ब्राह्मण की आभा, क्षत्रिय का बल है,
अन्याय के आगे, कब हम डरते है।
फरसे की धार सी तीखी है बातें हमारी।
अधर्म की जड़ों को पल में हम हराते है।
तपस्या की शक्ति, विद्या का सागर है हम!
कर्मों से अपने, भाग्य को लिखतें है।
हम वंशज है उसके, जिसने ज़ुल्मों को रौंदा है।
आज भी उस गौरव से हम जीते हैं और मरते है।
अवंतिका पलीवाल 🌹