प्रेम...
क्या मेरे शब्दों को
प्राथमिकता न देकर..
तुम मेरा केवल..
मन नहीं पढ़ सकते..
इतना भी मुश्किल नहीं है..
मन को पढ़ना..
बस तनिक अपने..
ह्रदय पर हाथ रखकर..
मेरे नयनों को पढ़ना है..
उनमें देखना है..
उस प्रवाहित होती..
प्रेम की गंगा को..
जिसका वास्तविकता में..
कल्याण तुम्हारी..
मन की काशी की..
उस चेतना में है..
जो अंततः तुमको..
समझाना चाहती है कि..
प्रेम का स्थान भी हो..
किन्तु इसका आराम..
इसकी शांति..
बस तुम्हारे संगम में है...
#प्रेम #तुम #दिल