कभी रुक गए कभी चल दिए
कभी चलते चलते भटक गए
यूँ ही उम्र सारी गुज़र गई
यूँ ही ज़िन्दगी के सितम सहे
कभी नींद में कभी होश में
तू जहाँ मिला तुझे देख कर
न नज़र मिली न ज़ुबां हिली
यूँ ही सर झुका के गुज़र गए
कभी ज़ुल्फ़ पर कभी चश्म पर
कभी तेरे हसीं वजूद पर
जो पसंद थे मेरी किताब में
वो शेर सारे बिखर गए
मुझे याद है कभी एक थे
मगर आज हम हैं जुदा जुदा
वो जुदा हुए तो संवर गए
हम जुदा हुए तो बिखर गए
कभी अर्श पर कभी फ़र्श पर
कभी उन के दर कभी दर -बदर
ग़म -ए -आशिक़ी तेरा शुक्रिया
हम कहाँ कहाँ से गुज़र गए