हूँ ना मैं कितनी बेमिशाल..!
ये हवाओं में उड़ते मेरे बाल,
कुछ इतने ही मेरे ज़िंदगी के मलाल।
हूंँ ना मैं कितनी बेमिशाल..!
घने अंधेरे में बैठे जुगनू से करती हूँ सवाल,
और आशियाओं तारों से बांटती दिल ए हाल।
हूँ ना मैं कितनी बेमिशाल..!
कुछ युं ही प्रकृति के साथ बैठे कर
मैं खुदको लेती हूँ सम्भाल।
हूँ ना कितनी बेमिशाल..!
कुछ लोग समझते हैं बेवकूफ पर मैं खामोश
रह कर नहीं करती उनसे बवाल,
मुस्कुरा देती हूँ जब अपनी अच्छाई को
होते देखती हूँ हलाल।