जिंदगी के तराने
चोट खाकर मरहम ढूंढने निकला हूं
सिविल सर्विसेज का रास्ता चुनकर
कम्बख़्त... सुकुन ढूंढने निकला हूं
खुदखुशी करके जिंदगी ढूंढने चला हूं
समझनें वाले हैं कहां..?
बस..अपनों को समझाने की वजह ढूंढने निकला हूं
रातों को काटकर सुबह का सूरज ढूंढने चला हूं
किस्मत को ठोकर मारकर...
मेहनत की औकात दिखाने चला हूं
शायद अपने ही अंदर छिपे
किसी और चरित्र को ढूंढने चला हूं
~ कौशल्या भाटिया ~