मैं एक जिंदगी हूं।
जिसमें भूख है, प्यास है,
इच्छायें हैं, आशायें हैं,
अभिलाषायें हैं, आकांक्षायें हैं,
तड़प है, कसक है, घुटन है,
टूटन है, बिखराव है, पिघलाव है,
रास्ते हैं, मोड़ हैं, रूकाव हैं,
ठहराव है, पड़ाव हैं,
लेकिन मंजिल नहीं है।
मैं एक जिन्दगी हूं।
जिसमें सांस है, मांस है,
मन है, तन है, बदन है,
आवश्यकतायें हैं, नीरसतायें हैं,
दुख है, दर्द है, टीसन है,
घाव हैं, अभाव हैं,
खामोशी है, मदहोशी है,
कहानी है, कवितायें हैं,
लेख हैं, उपन्यास हैं,
क्रान्ति है, अशान्ति है,
लेकिन शांति नहीं है।
मैं एक साज भी हूं,
और आवाज़ भी हूं,
मैं एक फूल हूं और पत्थर भी हूं,
प्रेम हूं और नफरत भी हूं,
एक दोस्त हूं और दुश्मन भी हूं,
मैं एक बहार हूं और खिज़ा भी हूं,
एक नम़ी भी हूं और
रेगिस्थान भी हूं,
मैं वीरान भी हूं और
आबाद भी हूं,
मैं एक जंगल भी हूं
और उजाड़ भी हूं,
क्योंकि मैं एक जिन्दगी हूं।
मेरी आंखों में झांक कर देखो,
इनमें अच्छाई भी मिलेगी
और बुराई भी मिलेगी,
अनभिज्ञता भी मिलेगी
और पहचान भी मिलेगी,
दर्द भी मिलेगा और
खुशी भी मिलेगी,
दास्तां भी मिलेगी
और शून्यता भी मिलेगी,
इनमें रिहाई भी मिलेगी
और कैद भी मिलेगी,
तस्वीर भी मिलेगी और
परछाई भी मिलेगी,
उथलाव भी मिलेगा
और गहराई भी मिलेगी,
क्योंकि मैं एक जि़न्दगी हूं।
जीती जागती जि़न्दगी,
इसे अपनत्व चाहिये,
इसे टूटन नहीं, बिखराव नहीं,
समेटने के लिये बाहें चाहिये,
तिरस्कार नहीं सहारा चाहिये,
खामोशी नहीं झंकार चाहिये,
दूरी नहीं नज़दीकी चाहिये,
मुझे सहारा चाहिये,
अनुपम अनुराग का,
भरे पूरे, ईमानी इकरार का,
ताकि, जिसके सहारे,
मैं टूट न सकूं, घुट न सकूं,
और बिखर न सकूं,
झुलस न सकूं, तड़प न सकूं,
मुझे तिरस्कार नहीं, लगाव चाहिये,
प्रेम चाहिये; चकोर जैसा,
क्योंकि मैं मृत्यु नहीं,
एक जि़न्दगी हूं।
-शरोवन
समाप्त।