मेरे जाने का संकेत सा है !
जैसे समय हो रहा है ।।
जाने की न रुचि है !
न रुकने की वजह दिखती है !
वजह का अधिकार क्षेत्र मेरा नही !
रुकने और जाने का भी ।
बात केवल इच्छा की है ।
इच्छा भी अपने स्वभाव से परिचित नहीं ।
हाँ भीतर कुछ है जो बरबस तुम्हारी ओर खींचता है!
तुझमें अशांति है किन्तु उस अशांति का मोह जाता नहीं ।
प्राणांतक दहलीज पर प्राणों की चाह तुम्हारे अहसास से
आसक्ति से भर रहा है मुझे। आसक्ति!
बुरी है ??? आखिर विलीन तुममें ही तो करेगी मुझे!
छूटेगी तो छूट जायेगी !
आसक्ति को पकड़कर रखी तो नहीं ।
मुझमें मैं नहीं ! मैं में आसक्ति है।
मैं कालिमा लपेटे हूँ , निश्तेज ! कान्तिहीन!
आखिर क्यों हो रही हूँ । मुझमें तो तु ही अधिक है
मैं तो खो रही हूँ। ।

Hindi Poem by Ruchi Dixit : 111924751

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