❤️प्रेम का आरंभ ❤️
तू प्रेम का आरंभ कर के चला गया
मैं प्रेम का अंत कैसे कर पाऊँगी....!!
ना समझ दिल मेरा...बता कैसे समझाऊँगी..!!
रेत की तरह हर वक्त फिसल ही जाएगा...
ठोकर खाकर दिल मेरा संभल ही जाएगा...
प्यार को जाने की इजाजत कैसे दे पाऊंगी..
ना समझ दिल मेरा...बता कैसे समझाऊँगी..!!
घुट घुट कर मुझको सासें भी लेना होगा..
टूट टूट कर ख्वाबों को मुझे सजाना होगा..
उन धुंधली यादों से मैं घर कैसे सजाऊंगी..
ना समझ दिल मेरा...बता कैसे समझाऊंगी!!
जिंदगी की कहानी में किरदार बेनाम हूऐ..
रातको हमनें मातम मनाया दिन सुहाने हुए..
दिल तो जख्मी मेरा..बात कैसे मुस्कुराउंगी..
ना समझ दिल मेरा...बता कैसे समझाऊंगी..!!
तू प्रेम का आरंभ कर के चला गया
मैं प्रेम का अंत कैसे कर पाऊँगी....!!
ना समझ दिल मेरा...बता कैसे समझाऊँगी..!!
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