Hindi Quote in Poem by Devaki Ďěvjěěţ Singh

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*डर*

डर तो केवल डर होता है l
ये रात और दिन का नहीं होता l

ये तो हर ल़डकी के मन में होता है
कभी ज्यादा कभी कम होता है l

लोगों की मानसिकता कैसी होगी
इस बात को सोचकर होता है l

प्रोफाइल फोटो नहीं लगा सकते ,
क्योंकि इन बॉक्स में लड़कों के
फालतू मैसेजस् का डर होता है l

नाम बदलकर आते हैं
ऑनलाइन दुनिया में हम
क्योंकि बदनाम होने का डर होता हैं l

रात को घर से बाहर निकलने पर
मन मे किसी अनहोनी की
आशंका का डर होता है l

चार लड़कों के बीच बस में
अकेली लड़की होने का डर होता है l

घर के बाहर लोगों की
घूरती आँखों का डर होता है l

सड़क पर लोगों के
अश्लील इशारों का डर होता है l

गलती मेरी नहीं फिर भी
बदनाम होने का डर होता है l

कभी-कभी तो
टूटकर बिखरने का डर होता है l

कब बदलेगा ये समाज
कब खत्म होगा मेरे मन का डर
या जीवन भर जीना होगा
इस डर के साए में मुझे घुट घुट कर ??

✍️देवकी सिंह

Hindi Poem by Devaki Ďěvjěěţ Singh : 111902120
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