बुलंद इस क़दर तेरी हस्ती निकली
पत्थर का तू और तेरी बस्ती निकली...
लेके उतरे थे जिसे दरिया ए मोहब्बत में
डूब गई......काग़ज़ की कश्ती निकली..
कमबख्त और क्या रह गया देखना बाकी
मेरी मोहब्बत....... उनकी मस्ती निकली...
मेरी परवरिश पर उँगलियाँ उठाने वालों
तुम्हारी तालीम भी तो सस्ती निकली..