मेरे जहन के यादो के पन्ने,
दबे थे कही सीने की पुरानी अलमारी के कौने में।
उस पर वक्त की धुल जम गई है,
और नई नई यादे उस पुरानी यादो को धुंधला कर गई है।
आज जब सालो बाद कुछ हवा चली ,
वह धुल उडा ले चली।
तब वह पुराना कींवाड खुला है।
उन पन्नो को हमने टटोला है,
चमक खो गई है।
पीले से उन प जतीॅल कागजो की ,सीयाही भी फीकी पड़ गई है।
फीर भी ,
उनमे एक नाम दीख रहा है,
जिसका अक्स पडता है मेरी ऑंखो मैं।
क्या
तुम आज
मेरे शहर आए थे?
डो.चांदनी अग्रावत
14/7/2023