कहां गये।
जहां गये और जिसके लिए गये यह समय की मांग है।वहां गये वहीं से आ गये ये मौसम बदलने की मांग है।बरसात की ऋतु प्रारम्भ हो गई है।बारिश की रिमझिम रिमझिम फुहार हमें भा गई है। बस मौसम का आनंद लेने के लिए चाय की प्याली की याद आ गई है। बस वही अदरक इलायची और लौग वाली चाय की प्याली की तलब महसूस हो रही है।चाय पीते हुए सखि सहेलियों के संग मेल मिलाप की बात हमें याद आ रही है।
चाय की प्याली का संग मिले यही प्रार्थना है। ऐसे
मौसम में चाय की प्याली साथ निभाती है। चाय की प्याली खाली होते ही दूसरी प्याली की तुरंत चाहत पैदा हो जाती है। तरह तरह के विचारों के उत्पन्न होने
को चाय की प्याली रोक देती है। बस और क्या कहें
चाय की प्याली मन में स्फूर्ति और ऊर्जा का संचार
करती है। सोच को परे रखकर अलग विचारों को
जन्म देती है।
सचमुच गजब होती है चाय की प्याली का शौक।
यह जाने अंजाने तो हमारी-आपकी शाम की दिनचर्या
बन जाती है और साथ निभाते रहती हैं। चाय की प्याली गम को भुला देने में सक्षम हो जाती है।मौसम की मांग है चाय की प्याली। हे आलि आकर चाय की प्याली में आधा आधा शेयर कर लो और दोनो एक
दूसरे का केयर करने के सपने बुनते रहें जब तक
दूसरी चाय की प्याली न आ जाए।
तो चलते हैं चाय बनाने सखि । तुम आओ चाय
पर । सत्संग चलेंगे चाय प्रसाद पाएंगे।
जय जय गुरुदेव कोटि कोटि प्रणाम।
-Anita Sinha