Hindi Quote in Shayri by Dr. Suryapal Singh

Shayri quotes are very popular on BitesApp with millions of authors writing small inspirational quotes in Hindi daily and inspiring the readers, you can start writing today and fulfill your life of becoming the quotes writer or poem writer.

डॉ. सूर्यपाल सिंह की ग़ज़लें- नए पत्ते से
_____________________________________________

(20)

हवा में बह रही अफ़वाह रोको तो।
सभी खेलें लहू से फाग रोको तो ।

रहे जो दोस्ती में डूब कर बरसों
बुझाते खून से वे प्यास रोको तो ।

गली-कूचे सभी सूने हुए देखो,
जले हैं गाँव के सद्भाव रोको तो।

लगे बरसों गृहस्थी को बनाने में,
वही अब हो रही है ख़ाक रोको तो।

सियासत बाँटती है खूब खेमों में,
मगर हम सब लगाते आग रोको तो ।


(21)

मरा है आँख का पानी जलाते घर ज़रा रोको ।
अभी वे पोछ कर सिन्दूर आते घर ज़रा रोको ।

उदासी आँख की उनको न कुछ भी दिख रही कोई,
भरे विद्वेष से काटें सभी के पर ज़रा रोको।

यहाँ बेख़ौफ़ ज़ालिम घूमते भयभीत करते हैं,
शिविर में कैद हैं बच्चे सताते डर ज़रा रोको।

यही वह देश है जन्में जहाँ, पाते हवा पानी,
इसी के हम निवासी पर करें बेघर ज़रा रोको।

बिना अब बस्तियाँ उजड़े उन्हें संतोष कैसे हो?
लिए शमशीर वे सब लपलपाते कर ज़रा रोको ।


(22)

फुदक कर खेलते थे आज बच्चे थरथराते हैं।
घटा कुछ गाँव में ऐसा सभी आँखें चुराते हैं।

चली आँधी कहीं ऐसी सभी बेबस दिखाई दें,
सहज विश्वास टूटा लोग अफ़वाहें उगाते हैं।

बड़ी बेसब्र है दुनिया, लड़ें हर बात पर क़ौमें
न कोई ग़म गुनाहों का तनिक क्या खौफ खाते हैं?

कराते खेल मजलिस में उफानों को हवा देते,
कभी बे-आबरू होते मगर आँखें दिखाते हैं।

घटाते जोड़ते हैं रोज़ दंगों का असर कितना?
चुनावी गणित में हैं दल, किधर बॅंट वोट जाते हैं?


(23)

कहीं कोई बग़ावत पर उतरता क्यों जरा सोचो।
बहुत दिन तक दुसह अन्याय सहता क्यों ज़रा सोचो।

हमेशा से दबाते आ रहे, कब तक सहन करता,
तनिक चेता, जुआ काँधे न धरता क्यों ज़रा सोचो।

सदा ही जो ठगा जाता वही करता बग़ावत भी,
तुम्हारी इन सज़ाओं से न डरता क्यों ज़रा सोचो।

न पाकर न्याय क़ौमें भी बगावत पर उतर आतीं
प्रशासन से कहीं विश्वास डिगता क्यों ज़रा सोचो।

अभी तक तो नहीं हम दे सके हैं न्याय की दुनिया,
भला स्वर यह बग़ावत का उभरता क्यों ज़रा सोचो।


(24)

परिन्दे शहर छोड़ गए गाँव चलें ।
अब शहर क़त्लगाह हुए गाँव चलें।
यहाँ हिन्दू मुसलमाँ की बस्ती है,
चलो कोई आदमी के गाँव चलें।


(25)

न सपने ख़त्म होते हैं किसी के हार जाने से।
नई कोंपल निकलती है, ज़रा सा प्यार पाने से ।
नई दुनिया अगम सागर, लहर उठती कहीं गिरती,
बढ़ें नाविक न डरते जो भँवर की मार खाने से ।


(26)

ज़मीं पर फूटते जो ज़लज़ले, हैं आग बरसाते ।
जिन्हें उनको बुझाना था वही हैं आग भड़काते ।
जलाने का जिन्हें चस्का बनाएँ घर कहाँ से वे,
न जिसने घर कभी सींचा उसे घर याद कब आते?

Hindi Shayri by Dr. Suryapal Singh : 111878382
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now