बेमिशाल
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कछुआ जैसी चाल है,
खरहा जैसा बाल है।
डींग हांकने में बढकर,
मिलता नहीं मिशाल है।
जब देखो तब गाल बजाता,
बिना बात का बात बनाता।
सही वक्त पर छिप जाता है,
आदमी बड़ा कमाल है।
जहां जाएंगे वहीं पाएंगे,
सिर्फ आहट की देर है।
नमक की तरह घुल जाता है,
चालाकी बेमिशाल है।
वर्तमान का यही रंग है,
ठग ठगी का जाल है।
दूध का धुला दिखता है,
पर काली पूरी दाल है।
**मुक्तेश्वर सिंह,कवि/कथाकार
-Mukteshwar Prasad Singh