Hindi Quote in Poem by किरन झा मिश्री

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साथ

साथ तुम्हारे मैंने अपने,
कई सपनों को सजाया था।
तुम मिलो या न मिलो हमें,
फिर भी उम्मीद को जगाया था।।

थी अधूरी सी ये जिंदगी मेरी,
तुमसे मिलकर परिपूर्ण हुई थी।
जीने की चाह खत्म हो रही थी,
तुम जो मिले तो फिर शुरू हुई थी।।

तुमसे मिलने की चाहत में,
मन में कितने फूल खिलेंगे।
तुम आओगे जब मेरे सामने,
यही सोचकर गले मिलेंगे।।

थामकर एक दूसरे का हाथ,
कदम से कदम मिलाएंगे।
नहीं छोड़ेंगे साथ कभी भी,
यही वादा हम कर जायेंगे।।

उनके कंधे पर सिर रखकर हम,
नदी किनारे दोनों बैठ जायेंगे।
नन्हें नन्हें कंकड़ों को फेंककर,
खामोशी में आहट कर जायेंगे।।

डालकर उनकी आंखों में आंखें,
बहुत कुछ उन्हें बताना था।
जिस सुखों से वंचित थे हम,
उस सुख को उनसे पाना था।।

प्रेम उन्हें करते है कितना,
यही उनको समझाना था।
अधूरी सी यह जिंदगी थी,
उसे पूर्ण कर जाना था।।

पर नियति को यह मंजूर नहीं था,
इस लिए वो हमें मिल नहीं पाए।
भूली बिसरी यादें बनकर वो,
जाने क्यों हमसे पीछा छुड़ाएं।।

उन मीठी यादों को सहेजकर,
अब अपने दिल में दफनाना है।
जो भी जीवन शेष बचा है,
उसे प्रभु में सिर्फ लगाना है।।

किरन झा मिश्री
ग्वालियर मध्य प्रदेश

-किरन झा मिश्री

Hindi Poem by किरन झा मिश्री : 111867814
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