अब और कहां जाया जाए ?
ख़्वाब को बिस्तरा बनाया जाए।
चांद से रोशनी ला लाकर
घर को सजाया जाए।
उनसे अब उम्मीद ही क्या करे?
जिनके जश्न में पैसा हमारा लगाया जाए।
हमको कहां नसीब है तन ढकना।
उनके बंगले में हुस्न सरे आम उड़ाया जाए।
वो जानते हैं हमारी हकीकत लेकिन।
नींद में उनको कौन सताए ?
चाहते तो हक के लिए पत्थर बाज बन जाते।
ये वतन को मां सोचता हूं। ,
और मां पर पत्थर कौन उठाए ?
-Anand Tripathi